"दबे पांव जल्दी –जल्दी सीढियां चढ़ना
ताकि तेरी एक आवाज से खुद को तर
कर लूं वो बेपरवाही में डूबी मैं गिरते
फिसलते पूरे दिन की कहानी गढ़ने के
लिए बेताबी से उस छत पर जाती थी
जिससे तेरी बातों के आशियाने को
बून सकूं हर कोना गवाह है की मैने तुझ
से कुछ कहते वक्त खुद को कितने बार
चैन से बैठने नहीं दिया कितनी बेवकूफियां
की और ना जाने कितनी नादानियां
पर दोष तो उस इश्क का है जो ऐसा होता
ही है और चाहने वाले हर शख्स के लिए
वो छत किसी उपहार से कम नही होती
सोचती हूं कभी ख्यालों में जाकर की वो छत
ना होती तो तमाम यादें –यादें ना होती ।
©mysterious .vs.
"