कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे, जब रौशनी | हिंदी शायरी

"कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे, जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है। हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर, पर जब खुद को समझ लिया, तो फिर ताल्लुुक़ में क्या है। ज़िंदगी के मोड़ों पे, ग़म और खुशी की छाँव मिली, मगर जब हकीकत सामने आई, तो फिर ख्वाबों में क्या है। तोड़ने चले थे हर तारा, अपने आसमान से, मगर जब खुदा मिला, तो फिर इस तलाश में क्या है। ©नवनीत ठाकुर"

 कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे,
जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है।

हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर,
पर जब खुद को समझ लिया, तो फिर ताल्लुुक़ में क्या है।

ज़िंदगी के मोड़ों पे, ग़म और खुशी की छाँव मिली,
मगर जब हकीकत सामने आई, तो फिर ख्वाबों में क्या है।

तोड़ने चले थे हर तारा, अपने आसमान से,
मगर जब खुदा मिला, तो फिर इस तलाश में क्या है।

©नवनीत ठाकुर

कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे, जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है। हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर, पर जब खुद को समझ लिया, तो फिर ताल्लुुक़ में क्या है। ज़िंदगी के मोड़ों पे, ग़म और खुशी की छाँव मिली, मगर जब हकीकत सामने आई, तो फिर ख्वाबों में क्या है। तोड़ने चले थे हर तारा, अपने आसमान से, मगर जब खुदा मिला, तो फिर इस तलाश में क्या है। ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर
कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे,
जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है।

हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर,
पर जब खुद को समझ लिया, तो फिर ताल्लुुक़ में क्या है।

ज़िंदगी के मोड़ों पे, ग़म और खुशी की छाँव मिली,

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