White दरख्त काट के हमने शहर बसाए, अब हर सांस को तर | हिंदी कविता

"White दरख्त काट के हमने शहर बसाए, अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है। दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं, हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है। जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं, फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है। हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा, हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है। ©नवनीत ठाकुर"

 White दरख्त काट के हमने शहर बसाए,
अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है।

दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं,
हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है।

जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं,
फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है।

 हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा,
हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है।

©नवनीत ठाकुर

White दरख्त काट के हमने शहर बसाए, अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है। दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं, हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है। जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं, फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है। हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा, हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है। ©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति

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