ये मैं नहीं हूँ, ये मुझ पर तेरे प्यार का नशा है,
जो रूह - जिस्म, और मेरी हर सांस में बसा है,
अब तुझ बिन जीना, मानो जैसे मेरे लिए सजा है,
सुनेहरी सुबहों में भी, तुझबिन अब कहाँ वो मजा है।
तू दूर है मुझसे, इस बात से तू मेरी जान क्यूँ ख़फ़ा है,
मेरे बारे में भी सोच, ये मेरे लिए भी तो एक बद्दुआ है,
ये दूरी है तो शायद, हमें कद्र करने का बखूबी पता है,
नज़दीकियों में कहाँ आजकल, रिश्तों में अब वफ़ा है।
माना की हर सुबह में, न तेरा दामन मुझे मिला है,
तुझको भी मेरे कांधे पर, सिर न रख पाने का गिला है,
इस एहसास के साथ जीने की, बेशक कोई वजह है,
शायद ख़ुदा ने हमारे लिए, कोई बेहतर खेल रचा है।
वक़्त वो दूर नहीं जब, मिलने की आने वाली बेला है,
हम दोनों के सब्र का फल, बस कुछ दिनों दूर खड़ा है,
मैं मिलकर तुझे चुम लूं, बाहों में भरने की तमन्ना है,
मेरे प्यार, मेरे इश्क़, तेरे होने से मेरा अस्त्तिव जुड़ा है।
©AK Ajay Kanojiya
"ये मैं नहीं हूँ, ये मुझ पर तेरे प्यार का नशा है,
जो रूह - जिस्म, और मेरी हर सांस में बसा है,
अब तुझ बिन जीना, मानो जैसे मेरे लिए सजा है,
सुनेहरी सुबहों में भी, तुझबिन अब कहाँ वो मजा है।"
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