विश्व को मोहमई महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा
सारथी तो कभी प्रेमी बना, तो कभी गुरु-धर्म निभा गया कान्हा
रूप विराट धरा तो, धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा
रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा
देवल आशीष जी
©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'