वो गहरे जख्मों को देखकर मुंह मोड़ना हालातों को हद | हिंदी कविता

"वो गहरे जख्मों को देखकर मुंह मोड़ना हालातों को हद दर्जे भुलाकर छोड़ना महंगा पड़ेगा भेद के मूल तत्व को नहीं पहचानना अपने लिए खड़े होने को भी बोझ जैसा मानना वो अपने शैतान केलिए कुर्बानी नहीं छोड़ता और तू अपनी पहचान से भी रहता है मुंह मोड़ता मेरे ही घर में पनाह मांग आंखें दिखाने वाले और पृथ्वीराज चौहान की आंखें जलाने वाले किस तरह से किसी भरोसे के लायक है छीन लेंगे जर जमीन जोरू इतने नालायक है केवल एकमात्र मौके की तलाश में है,, आप किस महजब के विश्वास में है देखा है कश्मीरी पंडितों के प्रेम और सौहार्द का नतीजा कुम्भकरणी नींद से और भी भयंकर हो जाएगा फजीता सखी कम से कम छह महीने में तो जागता था कुंभकर्ण सैकुलर जयचंद छः सौ सालों से सपनों में करते विचरण बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla"

 वो गहरे जख्मों को देखकर मुंह मोड़ना 
हालातों को हद दर्जे भुलाकर छोड़ना 

महंगा पड़ेगा भेद के मूल तत्व को नहीं पहचानना
अपने लिए खड़े होने को भी बोझ जैसा  मानना 

वो अपने शैतान केलिए कुर्बानी नहीं छोड़ता 
और तू अपनी पहचान से भी रहता है मुंह मोड़ता

मेरे ही घर में पनाह मांग आंखें दिखाने वाले 
और पृथ्वीराज चौहान की आंखें जलाने वाले 

किस तरह से किसी भरोसे के लायक है
छीन लेंगे जर जमीन जोरू इतने नालायक है 

 केवल एकमात्र मौके की तलाश में है,,
आप किस महजब के विश्वास में है 

देखा है कश्मीरी पंडितों के प्रेम और सौहार्द का नतीजा 
 कुम्भकरणी नींद से और भी भयंकर हो जाएगा फजीता

सखी कम से कम छह महीने में तो जागता था कुंभकर्ण 
सैकुलर जयचंद छः सौ सालों से सपनों में करते विचरण 
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla

वो गहरे जख्मों को देखकर मुंह मोड़ना हालातों को हद दर्जे भुलाकर छोड़ना महंगा पड़ेगा भेद के मूल तत्व को नहीं पहचानना अपने लिए खड़े होने को भी बोझ जैसा मानना वो अपने शैतान केलिए कुर्बानी नहीं छोड़ता और तू अपनी पहचान से भी रहता है मुंह मोड़ता मेरे ही घर में पनाह मांग आंखें दिखाने वाले और पृथ्वीराज चौहान की आंखें जलाने वाले किस तरह से किसी भरोसे के लायक है छीन लेंगे जर जमीन जोरू इतने नालायक है केवल एकमात्र मौके की तलाश में है,, आप किस महजब के विश्वास में है देखा है कश्मीरी पंडितों के प्रेम और सौहार्द का नतीजा कुम्भकरणी नींद से और भी भयंकर हो जाएगा फजीता सखी कम से कम छह महीने में तो जागता था कुंभकर्ण सैकुलर जयचंद छः सौ सालों से सपनों में करते विचरण बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla

निजता KK क्षत्राणी @R Ojha @Vikram vicky 3.0 @Lalit Saxena @Ravi Ranjan Kumar Kausik @Bhardwaj Only Budana

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