बिछड़ना तुमसे नियति पर प्राण संकट घिर गया था, यूं ल | हिंदी Poetry

"बिछड़ना तुमसे नियति पर प्राण संकट घिर गया था, यूं लगा कुछ गांठ से मानो हमारी गिर गया था, मांग बैठा था समंदर सब बटोरे सीप मोती याचना करती रही थी आंसुओं से पांव धोती.. तुम विदा में दे न पाए एक आलिंगन हमारा.. और तुम आये नहीं आना ज़रूरी था तुम्हारा। सृजना के अंतर्मन से...💞 लेखक - Shubh Pandit ✨ इलाहाबादी ✨ ©Dharma pandit( Unbreakable)"

 बिछड़ना तुमसे नियति पर प्राण संकट घिर गया था,
यूं लगा कुछ गांठ से मानो हमारी गिर गया था,
मांग बैठा था समंदर सब बटोरे सीप मोती
याचना करती रही थी आंसुओं से पांव धोती..
तुम विदा में दे न पाए एक आलिंगन  हमारा..
और तुम आये नहीं आना ज़रूरी था तुम्हारा।
सृजना के अंतर्मन से...💞
लेखक - Shubh Pandit ✨ इलाहाबादी ✨

©Dharma pandit( Unbreakable)

बिछड़ना तुमसे नियति पर प्राण संकट घिर गया था, यूं लगा कुछ गांठ से मानो हमारी गिर गया था, मांग बैठा था समंदर सब बटोरे सीप मोती याचना करती रही थी आंसुओं से पांव धोती.. तुम विदा में दे न पाए एक आलिंगन हमारा.. और तुम आये नहीं आना ज़रूरी था तुम्हारा। सृजना के अंतर्मन से...💞 लेखक - Shubh Pandit ✨ इलाहाबादी ✨ ©Dharma pandit( Unbreakable)

#Death sad poetry

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