White जो लक्ष्मण रेखा तोड़ेगा
पंचवटी में सोने का मृग, देख सिया जी हरसाई।
नंदनवन में चहल मची थी, मायामृग की चतुराई।
बोली राघव स्वर्ण मृग का, शिकार कर प्रभु लाओ।
कनक कुटी की सजा को, स्वर्ण चर्म से सजवाओ।
बोले राम प्राण प्रिए सीते, स्वर्ण मृग जग ना होते।
होनी तो होकर रहती, क्यों राम लखन निर्जन सोते।
मायाजाल रचा रावण ने, खुद रामचंद्र अवतारी नर।
चल पड़े पीछे मृग के तब, बीत चुका था तीन प्रहर।
अंधकार में असुर शक्ति, प्रबल प्रभावी हो जाती।
लक्ष्मण बचाओ प्राण मेरे, पंचवटी में ध्वनि आती।
जाओ लक्ष्मण प्राण प्रिय, रघुनंदन स्वामी मेरे हैं।
भाई की रक्षा करना, कर्तव्य लखन अब तेरे हैं।
मेरी चिंता छोड़ो लखन, स्वामी के प्राण बचाने है।
मेरी आज्ञा को मानो, अब तुमको फर्ज निभाने है।
ईश्वर यह कैसी माया है, रघुवर से कौन टकराएगा।
जो लक्ष्मण रेखा तोड़ेगा, तत्काल भस्म हो जाएगा।
©IG @kavi_neetesh
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