White पशुवत रहने वाला मानव हमसे बहुत अच्छा था ।
आधुनिकता में माना हमसे बहुत कच्चा था ।। रहता था हरदम वो बहुत मस्त होकर।
मान अपमान की चिन्ता से परे होकर।।
अन्तर हममें उसमें इतना वो पशुवत थे रहते ।
और हम न जाने क्या-क्या हैं स्वांग रचाते।।
खुद को खुद से ही हैं अच्छा बतलाते ।।
वो बेचारा था कुछ भी खा जाता ।
और हमको छप्पन भोग भी न भाता।।
कल मानव था झुंड में रहता ।
आज मानव मानव से डरता ।।
कल मिलते थे इन्सान ।
आज तो बस चहुंओर दरसते पाषाण।।
©Bharat Bhushan pathak
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