नारी की बारी हमें तो दादी नानी ने भी यही बतलाया है | हिंदी विचार Video

"नारी की बारी हमें तो दादी नानी ने भी यही बतलाया है राम राज मैं सीता ने भी बहुत दुख पाया है अरे जब सतयुग मैं ये सब हुआ था तो अब तो कलयुग आया है राम तो रह गए मंदिरो मैं जहां देखो वही रावण का साया है कभी बाप तो कभी पति कभी भाई तो कभी प्रेमी सारी इंसानियत ने मिलके मुझे हराया है अब इस संसार मैं बचा ही कौन मुझे तो मेरे अपनों ने ही गिराया है हमे जो पसंद है वो करने की छूट देकर , हम पर अहसान सा जताते है फिर होने पर थोड़ी सी गलती हमें हमारी, लक्ष्मण रेखा बताते है मुझे क्या खाना, क्या पहनना, क्या बोलना , क्या करना है , ये सब क्यों बताते हो मुझे समझ कर बेअक्ल , भला क्यों मेरी समझदारी पर सवाल उठाते हो मुझे मर्यादाऒं की जंजीरों मैं भांधकर, मेरी उम्मीदों, मेरे सपनों को मारकर भला किस बात पर इतना इतराते हो, मुझें निचा दिखाकर फिर क्यों झूटी तसल्ली दिखाते हो क्यों शर्मो, हया, जैसे शब्दों पर, केवल नारी का ही अधिकार है क्या समाज के ठेकेदारों के लिए , ये सारे शब्द बेकार हैं ये जो समाज मै ठेकेदारों का पद निभानेबाले ये भला होते कौन है हमें, हमारी मर्यादा बताने बाले अरे भला क्यों मैं सहूँ, क्यों ना कुछ करू इन समाज के ठेकेदारों से, भला क्यों मैं डरूँ मेरी खुशियां तुम्हे क्यों नहीं भाती है मेरी कामयाबी तुम्हे क्यों राश नहीं आती है मैं जब भी घर से बहार जाती हूँ ख़ुदको आकर्षण का बिंदु पाति हूँ कोई देखता, कोई निहारता, कोई घुरता जाता है पता नहीं हमें देखकर उनके मन को क्या भाता है अरे ब्रह्मा, बिष्नु, महेश ने भी नारी को सर्बश्रेष्ठ माना है तुमने तो केवल नारी को भोग की बस्तु जाना है मुझे तुम मंदीरो मैं रखते हो देवी बनाकर पर घर में रखना चाहते हो इशारो पर चलाकर नहीं चाहिए मुझे धन दौलत ऐसो आराम जहां मेरा कोई अस्तित्व नहीं वहां ये सब मेरे लिए है हराम मेरा साथ देने मैं शर्म आती है तो मेरे साथ मत चलो मेरी उपलब्धियों , मेरी तरक्कियों से मत जलो मुझे मेरी मंजिल पाने के लिए नहीं चाहिए किसीका सहारा मुझे नहीं जरुरत किसी मांझी की मैं खुद ढून्ढ लुंगी मेरा किनारा तेरा साथ नहीं तो न सही तेरे तिरस्कार को भी सह जायूंगी तुझसे जितना नहीं चाहती पर खुदको हारकर भी जी नहीं पाऊंगी उन्हें लगता है हम नाजुक हैं मासूम हैं फूल हैं अरे वो खुद मिट्टी मैं मिल गए जो समझते थे हम उनके पैरों की धुल हैं हम तो चाँद पर भी पहुँच गए मंगल पर यान भी पहुँचाया है अरे हम बो हैं जिसने दशरथ को सिर्फ एक ऊँगली से बचाया है हमें किसीको कुछ साबित करने की जरुरत नहीं हर जगह हमारा ही साया है जहाँ भी तुम अकेले पड़े जहां भी तुम्हे मेरी जरुरत पड़ी तुमने मुझे अपने साथ पाया है अब मेरी बारी आयी है ये सब को बतलायूंगी कर न सके थे जो तुम बो भी करके दिखाऊंगी अब मेरे हुनर को देखेगा जमाना इज्ज़त दौलत सौहरत केवल तुम्हे ही नहीं मुझे भी आता है कमाना ©Subhagini "

नारी की बारी हमें तो दादी नानी ने भी यही बतलाया है राम राज मैं सीता ने भी बहुत दुख पाया है अरे जब सतयुग मैं ये सब हुआ था तो अब तो कलयुग आया है राम तो रह गए मंदिरो मैं जहां देखो वही रावण का साया है कभी बाप तो कभी पति कभी भाई तो कभी प्रेमी सारी इंसानियत ने मिलके मुझे हराया है अब इस संसार मैं बचा ही कौन मुझे तो मेरे अपनों ने ही गिराया है हमे जो पसंद है वो करने की छूट देकर , हम पर अहसान सा जताते है फिर होने पर थोड़ी सी गलती हमें हमारी, लक्ष्मण रेखा बताते है मुझे क्या खाना, क्या पहनना, क्या बोलना , क्या करना है , ये सब क्यों बताते हो मुझे समझ कर बेअक्ल , भला क्यों मेरी समझदारी पर सवाल उठाते हो मुझे मर्यादाऒं की जंजीरों मैं भांधकर, मेरी उम्मीदों, मेरे सपनों को मारकर भला किस बात पर इतना इतराते हो, मुझें निचा दिखाकर फिर क्यों झूटी तसल्ली दिखाते हो क्यों शर्मो, हया, जैसे शब्दों पर, केवल नारी का ही अधिकार है क्या समाज के ठेकेदारों के लिए , ये सारे शब्द बेकार हैं ये जो समाज मै ठेकेदारों का पद निभानेबाले ये भला होते कौन है हमें, हमारी मर्यादा बताने बाले अरे भला क्यों मैं सहूँ, क्यों ना कुछ करू इन समाज के ठेकेदारों से, भला क्यों मैं डरूँ मेरी खुशियां तुम्हे क्यों नहीं भाती है मेरी कामयाबी तुम्हे क्यों राश नहीं आती है मैं जब भी घर से बहार जाती हूँ ख़ुदको आकर्षण का बिंदु पाति हूँ कोई देखता, कोई निहारता, कोई घुरता जाता है पता नहीं हमें देखकर उनके मन को क्या भाता है अरे ब्रह्मा, बिष्नु, महेश ने भी नारी को सर्बश्रेष्ठ माना है तुमने तो केवल नारी को भोग की बस्तु जाना है मुझे तुम मंदीरो मैं रखते हो देवी बनाकर पर घर में रखना चाहते हो इशारो पर चलाकर नहीं चाहिए मुझे धन दौलत ऐसो आराम जहां मेरा कोई अस्तित्व नहीं वहां ये सब मेरे लिए है हराम मेरा साथ देने मैं शर्म आती है तो मेरे साथ मत चलो मेरी उपलब्धियों , मेरी तरक्कियों से मत जलो मुझे मेरी मंजिल पाने के लिए नहीं चाहिए किसीका सहारा मुझे नहीं जरुरत किसी मांझी की मैं खुद ढून्ढ लुंगी मेरा किनारा तेरा साथ नहीं तो न सही तेरे तिरस्कार को भी सह जायूंगी तुझसे जितना नहीं चाहती पर खुदको हारकर भी जी नहीं पाऊंगी उन्हें लगता है हम नाजुक हैं मासूम हैं फूल हैं अरे वो खुद मिट्टी मैं मिल गए जो समझते थे हम उनके पैरों की धुल हैं हम तो चाँद पर भी पहुँच गए मंगल पर यान भी पहुँचाया है अरे हम बो हैं जिसने दशरथ को सिर्फ एक ऊँगली से बचाया है हमें किसीको कुछ साबित करने की जरुरत नहीं हर जगह हमारा ही साया है जहाँ भी तुम अकेले पड़े जहां भी तुम्हे मेरी जरुरत पड़ी तुमने मुझे अपने साथ पाया है अब मेरी बारी आयी है ये सब को बतलायूंगी कर न सके थे जो तुम बो भी करके दिखाऊंगी अब मेरे हुनर को देखेगा जमाना इज्ज़त दौलत सौहरत केवल तुम्हे ही नहीं मुझे भी आता है कमाना ©Subhagini

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