White राम जी का वन आगमन और माता शबरी की प्रतीक्षा ~~
जब भगवान श्रीराम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए घर से निकलते हैं, तब शबरी माता, जो एक ऋषि की कक्षा में दीक्षा प्राप्त करने वाली एक वृद्धा साधिका थीं, ने राम जी की आने की प्रतीक्षा शुरू करती है। वह हमेशा भगवान श्रीराम का नाम जपते हुए अपने आश्रम में बैठी रहती थीं, और भगवान के आगमन का ह्रदय से प्रतीछा करती है । शबरी माता ने वर्षों तक तपस्या की थी, लेकिन भगवान राम के दर्शन की कोई सन्देश नहीं मिलता है ,वे सोचती है कि राम जी के आने पर उन्हें उनका आदर-सत्कार करने का अवसर मिलेगा। एक दिन, शबरी माता ने राम जी के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए प्रेम पूर्वक बेर (जामुन) इकट्ठा किए। इन बेरों को शबरी माता ने पहले खुद चखा और जो बेर मीठे होते हैं, वही राम जी के लिए रख लिए और जो कड़वे होते हैं, उन्हें स्वयं खा लेती हैं । ऐसा करते हुए वह भगवान राम जी के लिए अपनी भक्ति और प्रेम अर्पण कर रही होती हैं।
जब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ शबरी के आश्रम में पहुँचते हैं, तो शबरी माता ने उन्हें बेर देती हैं । शबरी माता की इस निश्छल भक्ति और प्रेम देखकर राम जी ने वे बेर प्रसन्नता से खा लेते हैं। राम जी को बेर का स्वाद उनकी मांद, उनके अनूठे प्रेम और उनके समर्पण में भरा हुआ सत्य मिलता है । भगवान राम ने शबरी माता के प्रेम को समझा और उनकी भक्ति को सराहा। राम जी के लिए यह बेर बहुत खास थे, क्योंकि वे किसी भी बाहरी दिखावे या छल-प्रपंच के बिना, शुद्ध प्रेम और समर्पण को पहचानते हैं । शबरी माता का यह कार्य यह दिखाता है कि भक्ति का मार्ग केवल बाहरी आचार-व्यवहार से नहीं, बल्कि मन के गहरे प्रेम और श्रद्धा से होता है।
इस प्रसंग से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान, व्यक्ति के बाहरी रूप-रंग या कर्मों को नहीं, बल्कि उसकी नीयत, भक्ति और प्रेम को देखते हैं।
नितिन नन्दन
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