किसी का जाना इस कदर से खा गया मुझको ,
पानी की जरूरत नही पड़ी आसुओं में डूबा गया मुझको ,
मेरे हाथ कांपते है पांव लड़खड़ाते है जुबां से शब्द नही निकलते ,
इतनी सी उम्र में वो क्या क्या दिखा गया मुझको ,
मैं सोचता हूं कि क्या से क्या हो गया है अब ,
सबकुछ जैसे खो गया है बिखर गया है अब ,
किसी का यकीन मत करना इतना बता गया मुझको ,
सच का जैसे आईना दिखा गया मुझको ,
अब मेरी ऑख से सबकुछ साफ दिखता है
वो जाते जाते इतना रुला गया मुझको।
विनोद दुबे || स्याही ||
©VINOD DUBEY◆SYAHII◆◆سیاہی◆
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