जानो तुम एक दर्द मर्द के, कितने दर्दों को उसने झेला है।
देखो तुम उसकी चीर के छाती,कितनी छूरियो के घाव खाए।।
उसने कितने दर्द छुपाएं ,उसने कितने मर्ज छुपाए
बहता जब भी आखों का दरिया ,दर्द मे बहती हजारों फिजाए।।
काश! तुम जानोगे दर्द हमारे,हो जाएंगे सर दर्द तुम्हारे
कितने निष्ठुर बनके बैठे ,मन में ऐसा कुछ तन कर बैठे।।
मर्द है तो मर्दों के जैसे , मर्दों सा हम बनकर बैठे,,,,,,
©Ombhakat Mohan( kalam mewad ki)