आओ दो पल रुको तो...आओ बैठो इधर
अपने उलझे गेसूओं में अपनी उंगलियों को उलझाते हुए
यूं उलझाते....सुलझाते कोई बचपन का किस्सा सुनाते हुए
और फिर बालों को झटकते, खिलखिलाकर मुस्कुराते हुए
आओ ना ऐसे ही बैठी रहो ना पास मेरे..बात बेबात में मुझको चिढ़ाते हुए
मेरी चुप्पियों पर भी अपना हक जताते हुए
मेरे बालों को जरा सा सहलाकर मेरी परेशानियों को दूर भागते हुए
और जाते जाते मुझे कसकर गले लगाते हुए
रोक दो ना समय को वहीं आओ ना बैठी रहो ना पास मेरे
मेरी हमदर्द, मेरी महरम बन बैठी रहो ना पहलू मैं
प्यारी सी मेरी वो दोस्त बन ..
©Rihan khan
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