इंतज़ार की घड़ियाँ बीत गई,न जाने कितनी सदियाँ बीत गई..!
बीत गए ज़माने कितने,नए पुराने फ़साने कितने..!
नहीं मिला जो था सुकून,तुझे पाने का कुछ ऐसा जुनून..!
अब कैसी कश्मकश में,ज़िन्दगी तबाह हो रही है..!
ज़ख्म भरते नहीं यादों के,बेमतलब की दवा हो रही है..!
कोई कहता है ऊपरी,हवा का चक्कर है..!
ये तो ख़ुद से ख़ुद की,हार जीत की टक्कर है..!
घुल रही ज़िन्दगी ज़हर में,ज़माने को लग रहा जीवन शक्कर है..!
हार गए हैं ख़ुद से ही हम,आँख खुली टूटा सारा भ्रम..!
लोग चलते रहे,बेवजह ही हमसे जलते रहे..!
वो पहुँच गए सफलता के शिखर पर,हम कर रहे हैं परिश्रम..!
मिलेगी ज़िन्दगी खुशियों वाली,या मौत का दरिया मिलेगा..!
हमने तो अपनी तरफ से,किये हैं सारे अच्छे कर्म..!
जीवन का मतलब सिर्फ ख़ुशियाँ पाना नहीं,ख़ुशियाँ बाँटना ही है असली धर्म..!
©SHIVA KANT(Shayar)
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