पल्लव की डायरी
उग आया है जंगल भारत मे
,मनमाना आचरण सियासी है
शिशक रहा मूल्य मानवीय
अराजक सत्ताधारी है
चौखटे न्याय की भी दबाब में है
माननीय उचित निर्णय ले नही पाते है
दबे है कितने राज उनके
,कारनामे इंगित हो रहे है
शर्मशार हो रही न्याय प्रणाली
बड़े अपराध संरक्षण में पले
छोटे अपराध सूली चढ़ जाते है
तराजू न्याय का एक तरफ संरक्षण में झुका है
दूसरा पलड़ा कानून की भेंट चढ़ा
बुलजोडरो से अन्याय होता है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
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