जब आँख खुली, मैंने लुटा कारवाँ देखा
बंजर ज़मीं देखी, मैला आसमाँ देखा
लाखों के पैरों के तले ज़मीन ना रही
वीरानियों का हर क़दम मैंने निशाँ देखा
अब जानवर से बदतर इंसान हो गया
बर्बादियों को देख ख़ुदा बे-ज़बाँ देखा
मारने पे तुला है इंसान आज भी
फूलों की जगह काँटों को दरमियाँ देखा
किस पे करें भरोसा, किस की पनाह लें
टूटा हुआ मकान और उठता धुआँ देखा
लाशों के ढेर से न हम ने सीखा है सबक़ "जग्गी"
हर शख़्स को डरा हुआ और बद-गुमाँ देखा
©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!
#lightning