नरक की कल्पनाओं मे दिल दहल उठे गा, मंज़ंर नरक का | हिंदी कविता

"नरक की कल्पनाओं मे दिल दहल उठे गा, मंज़ंर नरक का खुली आँखों से जब दिखे गा, तडपती आत्माओं की चीत्कार से रुह कापे गी दर्द से रुह भी उस वक्त क्षमा की भीख मागे गी. ©Amol M. Bodke"

 नरक की कल्पनाओं मे दिल दहल उठे गा, 
मंज़ंर नरक का खुली आँखों से जब दिखे गा, 
तडपती आत्माओं की चीत्कार से रुह कापे गी
दर्द से रुह भी उस वक्त क्षमा की भीख मागे गी.

©Amol M. Bodke

नरक की कल्पनाओं मे दिल दहल उठे गा, मंज़ंर नरक का खुली आँखों से जब दिखे गा, तडपती आत्माओं की चीत्कार से रुह कापे गी दर्द से रुह भी उस वक्त क्षमा की भीख मागे गी. ©Amol M. Bodke

Kalki

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