रात बड़ी अच्छी लगती थी मेरे ढंग से चलती थी सो जात | हिंदी कविता

"रात बड़ी अच्छी लगती थी मेरे ढंग से चलती थी सो जाता था नीद सुकून की या मेरे संग जागती थी अभी भी जागती है नीदे पर साथ नहीं मेरे जगती मैं अपने कोने में जगता वो अपने में ही अब रहती राते जो सुकून दिया करती थी अब वो भी नहीं सहज रहती दिन के साथ साथ अब तो राते भी परेशान किया करती।। ©Vimal Gupta"

 रात बड़ी अच्छी लगती थी
मेरे ढंग से चलती थी
 सो जाता था नीद सुकून की
या मेरे संग जागती थी
अभी भी जागती है नीदे
पर साथ नहीं मेरे जगती 
मैं अपने कोने में जगता 
वो अपने में ही अब रहती
राते जो सुकून दिया करती थी
अब वो भी नहीं सहज रहती
दिन के साथ साथ अब तो 
राते भी परेशान किया करती।।

©Vimal Gupta

रात बड़ी अच्छी लगती थी मेरे ढंग से चलती थी सो जाता था नीद सुकून की या मेरे संग जागती थी अभी भी जागती है नीदे पर साथ नहीं मेरे जगती मैं अपने कोने में जगता वो अपने में ही अब रहती राते जो सुकून दिया करती थी अब वो भी नहीं सहज रहती दिन के साथ साथ अब तो राते भी परेशान किया करती।। ©Vimal Gupta

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