Maa मेरे कर्मो के आगे वो,
गुस्से से लाल, पर नम्र पड़ जाती है,
में खाना ना खाऊं तो,
बार बार मुझे मनाती है,
बापू की मार से हर दफा बचाती है,
वो जो सब सह जाए, ओर आंसू अपने छुपाती है,
हां वो मां कहलाती है ।।
तकलीफों का भंडार है जिसपर,
बोझ सारे उठाती है,
बापू का कंधा कमजोर न पड़े,
इसलिए कंधे से कंधा मिलाती है,
हां वो मां कहलाती है,
©Richard
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