कश्मकश कोई तमन्ना इतनी हावी कैसे हो सकती है मुझे | हिंदी Poetry

"कश्मकश कोई तमन्ना इतनी हावी कैसे हो सकती है मुझे सारा का सारा कैसे ले सकती है मेरी सूझ बूझ कहाँ है मेरा वज़ूद कहाँ है ये कैसा वेग है जो मुझे लिए जा रहा है मैं कहाँ हूँ मुझे कौन चुरा रहा है ये कैसी धुन है जो मेरे सर पर सवार है ये खुमारी किसका कारोबार है मेरी सुबह कहाँ है मेरी शब कहाँ है मेरा पल कहाँ है मेरा पहर कहाँ है मैं किसके लिए जी रही हूँ मैं क्या पी रही हूँ ये ग़म किसका है ये ख़ुशी किसकी है क्या शक़्ल है जो मुझे बार बार दिखती है ये कैसी नियती है ये कैसा नसीब है ये कौन है जो मेरे इतने करीब है ये वक़्त किसका है ये दौर किसका है ये किसकी साजिश है ये किसिकी तरक़ीब है मैं किसकी रक़ीब हूँ वो किसका हबीब है मुझमें इतनी लापरवाही कैसे हो सकती है मेरी बेख़ुदी कैसे खो सकती है ये मैंने किसका होश सम्भाला है मेरी आँखों में किसने क्या डाला है मेरे सवालों के जवाब किसके पास है मुझे किसका इंतज़ार है मुझे किसकी आस है मेरा दिल आए रोज़ क्यों हताश है बुझती क्यों नहीं जो ये प्यास है ये ज़मीं पर कौन लेटा है ये मैं हूँ या कोई लाश है। ©Ritu Nisha"

 कश्मकश

कोई तमन्ना इतनी हावी कैसे हो सकती है
मुझे सारा का सारा कैसे ले सकती है
मेरी सूझ बूझ कहाँ है
मेरा वज़ूद कहाँ है
ये कैसा वेग है जो मुझे लिए जा रहा है
मैं कहाँ हूँ मुझे कौन चुरा रहा है
ये कैसी धुन है जो मेरे सर पर सवार है
ये खुमारी किसका कारोबार है
मेरी सुबह कहाँ है मेरी शब कहाँ है
मेरा पल कहाँ है मेरा पहर कहाँ है
मैं किसके लिए जी रही हूँ
मैं क्या पी रही हूँ
ये ग़म किसका है ये ख़ुशी किसकी है
क्या शक़्ल है जो मुझे बार बार दिखती है
ये कैसी नियती है ये कैसा नसीब है
ये कौन है जो मेरे इतने करीब है
ये वक़्त किसका है 
ये दौर किसका है
ये किसकी साजिश है ये किसिकी तरक़ीब है
मैं किसकी रक़ीब हूँ वो किसका हबीब है
मुझमें इतनी लापरवाही कैसे हो सकती है
मेरी बेख़ुदी कैसे खो सकती है
ये मैंने किसका होश सम्भाला है
मेरी आँखों में किसने क्या डाला है
मेरे सवालों के जवाब किसके पास है
मुझे किसका इंतज़ार है मुझे किसकी आस है
मेरा दिल आए रोज़ क्यों हताश है
बुझती क्यों नहीं जो ये प्यास है
ये ज़मीं पर कौन लेटा है
ये मैं हूँ या कोई लाश है।

©Ritu Nisha

कश्मकश कोई तमन्ना इतनी हावी कैसे हो सकती है मुझे सारा का सारा कैसे ले सकती है मेरी सूझ बूझ कहाँ है मेरा वज़ूद कहाँ है ये कैसा वेग है जो मुझे लिए जा रहा है मैं कहाँ हूँ मुझे कौन चुरा रहा है ये कैसी धुन है जो मेरे सर पर सवार है ये खुमारी किसका कारोबार है मेरी सुबह कहाँ है मेरी शब कहाँ है मेरा पल कहाँ है मेरा पहर कहाँ है मैं किसके लिए जी रही हूँ मैं क्या पी रही हूँ ये ग़म किसका है ये ख़ुशी किसकी है क्या शक़्ल है जो मुझे बार बार दिखती है ये कैसी नियती है ये कैसा नसीब है ये कौन है जो मेरे इतने करीब है ये वक़्त किसका है ये दौर किसका है ये किसकी साजिश है ये किसिकी तरक़ीब है मैं किसकी रक़ीब हूँ वो किसका हबीब है मुझमें इतनी लापरवाही कैसे हो सकती है मेरी बेख़ुदी कैसे खो सकती है ये मैंने किसका होश सम्भाला है मेरी आँखों में किसने क्या डाला है मेरे सवालों के जवाब किसके पास है मुझे किसका इंतज़ार है मुझे किसकी आस है मेरा दिल आए रोज़ क्यों हताश है बुझती क्यों नहीं जो ये प्यास है ये ज़मीं पर कौन लेटा है ये मैं हूँ या कोई लाश है। ©Ritu Nisha

#sad_quotes love poetry for her

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