एक समाज है, जिसमे रहता है एक परिवार, जो आता है एक

"एक समाज है, जिसमे रहता है एक परिवार, जो आता है एक ऐसे वर्ग से, जिसे सपने देखने का हक नहीं है। रोज़ की ज़रूरत को पूरा करते करते, पूरी हो जाती है उस परिवार की ज़िंदगी। जहाँ बच्चो को जिंदगी जीना नहीं, पूरा करना सीखाता है हालात, और फिर, मनचले मन में उठते है कुछ ख़्वाब, और वो मन हर इंसान से पूछता है उसके मन में भरे ढेरो सवाल। दबा दिया जाता है, उसकी कुछ अनकही आकांक्षाओं को, परिवार के हालात को बार बार बता कर, चुप हो जाता है वो मन, एकदम चुप, कर लेता है स्वीकार हर बात को , तब वो बनता है समाज का हिस्सा, जिसे इस प्रथा को आगे बढ़ाना है, अपने जैसों को जिंदगी जीना नहीं, पूरा करना सीखाना है। ✍️दिव्या"

 एक समाज है,
जिसमे रहता है एक परिवार,
जो आता है एक ऐसे वर्ग से, जिसे सपने देखने का हक नहीं है।
रोज़ की ज़रूरत को पूरा करते करते,
पूरी हो जाती है उस परिवार की ज़िंदगी।
जहाँ बच्चो को जिंदगी जीना नहीं, 
पूरा करना सीखाता है हालात,
और फिर,
 मनचले मन में उठते है कुछ ख़्वाब,
और वो मन हर इंसान से पूछता है उसके मन में भरे ढेरो सवाल।
दबा दिया जाता है, उसकी कुछ अनकही आकांक्षाओं को,
परिवार के हालात को बार बार बता कर,
चुप हो जाता है वो मन, एकदम चुप,
कर लेता है स्वीकार हर बात को ,
तब वो बनता है समाज का हिस्सा,
जिसे इस प्रथा को आगे बढ़ाना है,
अपने जैसों को जिंदगी जीना नहीं,
पूरा करना सीखाना है।

✍️दिव्या

एक समाज है, जिसमे रहता है एक परिवार, जो आता है एक ऐसे वर्ग से, जिसे सपने देखने का हक नहीं है। रोज़ की ज़रूरत को पूरा करते करते, पूरी हो जाती है उस परिवार की ज़िंदगी। जहाँ बच्चो को जिंदगी जीना नहीं, पूरा करना सीखाता है हालात, और फिर, मनचले मन में उठते है कुछ ख़्वाब, और वो मन हर इंसान से पूछता है उसके मन में भरे ढेरो सवाल। दबा दिया जाता है, उसकी कुछ अनकही आकांक्षाओं को, परिवार के हालात को बार बार बता कर, चुप हो जाता है वो मन, एकदम चुप, कर लेता है स्वीकार हर बात को , तब वो बनता है समाज का हिस्सा, जिसे इस प्रथा को आगे बढ़ाना है, अपने जैसों को जिंदगी जीना नहीं, पूरा करना सीखाना है। ✍️दिव्या

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