सपना आया और टूट गया..
टूटा तो कष्ट हुआ ...
अब किस पर इल्जाम लगाऊं...
अपने पापों को पुण्य कहूं....
किसकी कमियां गिनवाऊं...
हर चेहरे में अवगुण ढूंढे,
हर चेहरा समझा दागी...
अपने चेहरे के दागों को नहीं देख मैं पाता..
प्रिय बोलो दर्पण कहां छुपाता.....
सपना आया और टूट गया ....
टूटा क्योंकि .....सपना था
ये दुनिया के गाजे बाजे ...
मुझको मुझ से ही बिसराते।
सहना अब मैं गमों का साया जैसे भूल गया ...
मां के आंचल में छुप कर के रोना भूल गया ....
दुनिया की इस चका चौंध में सोना भूल गया....
सपना आया .. भी एक सपना था .....
क्योंकि.......... मैं सोना भूल गया ।
©Amit Tiwari
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