किन्नर.. दो पैर दो हाथ के हम भी नर या नारी है.. च | हिंदी कविता

"किन्नर.. दो पैर दो हाथ के हम भी नर या नारी है.. चेहरा मर्द सां होकर भी फीर भी पेहने सारी है .. रोड हायवे सिग्नल पर बार बार बजती ताली है.. हिजडा हिजडा बोलते हमे क्या सच मे हम गाली है.. ना कोई वजुद हमारा जैसे कीचड की नाली है.. पेट के चक्कर से हमारे ओठो पर आज लाली है.. घर- माँ बाप होते हुये फिर भी ना कोई घर हैं.. सिर्फ यही गलती है हमारी हम ना तो नारी या नर है.. हम ना तो नारी या नर है.. ©गोरक्ष अशोक उंबरकर"

 किन्नर..
दो पैर दो हाथ के 
हम भी नर या नारी है..
चेहरा मर्द सां होकर भी 
फीर भी पेहने सारी है ..

रोड हायवे सिग्नल पर 
बार बार बजती ताली है..
हिजडा हिजडा बोलते हमे 
क्या सच मे हम गाली है..

ना कोई वजुद हमारा 
जैसे कीचड की नाली है..
पेट के चक्कर से हमारे 
ओठो पर आज लाली है..

घर- माँ बाप होते हुये 
फिर भी ना कोई घर हैं..
सिर्फ यही गलती है हमारी 
  हम ना तो नारी या नर है..

हम ना तो नारी या नर है..

©गोरक्ष अशोक उंबरकर

किन्नर.. दो पैर दो हाथ के हम भी नर या नारी है.. चेहरा मर्द सां होकर भी फीर भी पेहने सारी है .. रोड हायवे सिग्नल पर बार बार बजती ताली है.. हिजडा हिजडा बोलते हमे क्या सच मे हम गाली है.. ना कोई वजुद हमारा जैसे कीचड की नाली है.. पेट के चक्कर से हमारे ओठो पर आज लाली है.. घर- माँ बाप होते हुये फिर भी ना कोई घर हैं.. सिर्फ यही गलती है हमारी हम ना तो नारी या नर है.. हम ना तो नारी या नर है.. ©गोरक्ष अशोक उंबरकर

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