आक्रोश भरा जन-जन में झुलसी फिर बेटी नगर में सुनो द | हिंदी कविता

"आक्रोश भरा जन-जन में झुलसी फिर बेटी नगर में सुनो देश के तुम युवाओं चुल्लू भर पानी में मर जाओं क्यों नीयत इतनी सड़ी है बेटी नहीं कोई लकड़ी है जिंदा जिसे जला डाला क्षण भर भी हृदय नहीं कांपा घर में क्या औरत नहीं या दिल में अब गैरत नहीं थक गए अब कानून से जो सने बेटियों के खून से आरोपी फिर होंगे बरी फिर जलेगी निर्भया किसी गली। ***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️"

 आक्रोश भरा जन-जन में
झुलसी फिर बेटी नगर में
सुनो देश के तुम युवाओं
चुल्लू भर पानी में मर जाओं
क्यों नीयत इतनी सड़ी है
बेटी नहीं कोई लकड़ी है
जिंदा जिसे जला डाला
क्षण भर भी हृदय नहीं कांपा
घर में क्या औरत नहीं
या दिल में अब गैरत नहीं
थक गए अब कानून से
जो सने बेटियों के खून से
आरोपी फिर होंगे बरी
फिर जलेगी निर्भया किसी गली।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️

आक्रोश भरा जन-जन में झुलसी फिर बेटी नगर में सुनो देश के तुम युवाओं चुल्लू भर पानी में मर जाओं क्यों नीयत इतनी सड़ी है बेटी नहीं कोई लकड़ी है जिंदा जिसे जला डाला क्षण भर भी हृदय नहीं कांपा घर में क्या औरत नहीं या दिल में अब गैरत नहीं थक गए अब कानून से जो सने बेटियों के खून से आरोपी फिर होंगे बरी फिर जलेगी निर्भया किसी गली। ***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️

#आक्रोश

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