कि ये कौन आया है हमारी महफ़िल में ,
हम क्यों ऐसे मुस्करा रहे हैं ;
क्यों किसी और की कमाई दौलत को ,
हम यूं ही अपना बता रहे हैं ;
हमने अपनी चाहत छिपाई है आजतक उनसे ,
हम क्यों ये राज़ खुलने पे बौखला रहे हैं ;
हमें तो इश्क हुआ है उनसे मगर ,
हम वो इंसान हैं ही नहीं जो पेश आ रहे हैं ;
हम इतरा रहे हैं हम घबरा रहे हैं ,
उनसे इश्क का इज़हार करते हुए शर्मा रहे हैं :
कि ना जाने ऐसा क्या हो गया है हमें ,
हम क्या थे और हम क्या हुए जा रहे हैं
©Vibhu Karn
की जिंदगी अब बीत चली है..
और हमने जिंदगी जीने के बहाने ढूंढ लिये हैं...
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