बनी हूँ मैं मुसाफ़िर अब नहीं मेरा ठिकाना है। हुई | हिंदी कविता

"बनी हूँ मैं मुसाफ़िर अब नहीं मेरा ठिकाना है। हुई मैं ख़ुद दीवानी हूँ मेरा दिल भी दीवाना है। भटकती हूँ मैं सदियों से अँधेरों की ही गलियों में, मैं जुगनू हूँ , अँधेरों में मुझे जीवन बिताना है। ©आयुषी गुप्ता ©ayushigupta"

 बनी हूँ मैं मुसाफ़िर अब नहीं मेरा ठिकाना है। 
हुई मैं ख़ुद दीवानी हूँ मेरा दिल भी दीवाना है। 

भटकती हूँ मैं सदियों से अँधेरों की ही गलियों में, 
मैं जुगनू हूँ , अँधेरों में मुझे जीवन बिताना है। 
©आयुषी गुप्ता

©ayushigupta

बनी हूँ मैं मुसाफ़िर अब नहीं मेरा ठिकाना है। हुई मैं ख़ुद दीवानी हूँ मेरा दिल भी दीवाना है। भटकती हूँ मैं सदियों से अँधेरों की ही गलियों में, मैं जुगनू हूँ , अँधेरों में मुझे जीवन बिताना है। ©आयुषी गुप्ता ©ayushigupta

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