संवेदनाएं मर चुकीं है,
आंखें अब सूख गईं है,
ईमान अब खो गए है,
इंसान वहसी हो गए है,
अंधे दौर का क्या होगा?
बादशाह पे वजीर हावी है,
कानून महज़ किताबी है,
लूट,हत्या,बलात्कार हो रहे,
मुंसिफ,दारोगा सब सो रहे,
अंधे दौर का क्या होगा?
साहूकार सब अब चोर हो गए,
चोर बेचारे कुछ और हो गए,
मौत पे अब मातम नहीं होता,
गाल किसी का नम नहीं होता,
अंधे दौर का क्या होगा?
सरकारें मजहबी हो गईं हैं,
लोकतंत्र की ईंटें गिर रहीं हैं,
आवाम का खून चूसा जा रहा,
जुमलों से अच्छा दिन आ रहा,
अंधे दौर का क्या होगा?
©ASHUTOSH Maurya
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