लड़खड़ा जाऊँ तो उठाने को झुकती नहीं क्या ए ज़िंदगी झ | हिंदी Poetry

"लड़खड़ा जाऊँ तो उठाने को झुकती नहीं क्या ए ज़िंदगी झंझावातों से तू थकती नहीं क्या अरे रुक जा तू भी तो अपनी ही हैं ना आखिर देख मासूम का दुःख भी तेरी दुखती नहीं क्या ©Rajani Mundhra"

 लड़खड़ा जाऊँ तो उठाने को झुकती नहीं क्या 
ए ज़िंदगी झंझावातों से तू थकती नहीं क्या 
अरे रुक जा तू भी तो अपनी ही हैं ना आखिर 
देख मासूम का दुःख भी तेरी दुखती नहीं क्या

©Rajani Mundhra

लड़खड़ा जाऊँ तो उठाने को झुकती नहीं क्या ए ज़िंदगी झंझावातों से तू थकती नहीं क्या अरे रुक जा तू भी तो अपनी ही हैं ना आखिर देख मासूम का दुःख भी तेरी दुखती नहीं क्या ©Rajani Mundhra

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