ज्ञाता है वह सकल विश्व का ।
ज्ञान उसका आधार है।।
कलम जहाँ है शक्ति उसकी ।
आवाज उसकी पहचान है।।
समकछ है वह कुम्हार का।
बस दिये,मटके नही बनाता ।
बनाता है सबसे अलग वह।
वैज्ञानिक,डाॅक्टर ,इंजिनियर
विकास शील पुरुष बनाता है।
सोंच होती है उड़ान उसकी ।
अपनी पहचान शिष्य से बनाता है।
क्रोध,शान्ती,प्रेम अस्त्र है उसके।
समय समय पर इसका प्रयोग दिखलाता है।
भटके पथिक को राह बताता।
उज्जवल भविष्य की कामना कराता ।
सत्य कहूँ तो वह परम् प्रतापी ज्ञान सम्राट कहलाता है।
कवि "प्रताप" चरणो मे वंदन है करता ।
वह अद्वितीय व्यकि्त शिक्षक कहलाता है।।
©-प्रताप