उड़ान
मर्यादाओं की सीमा में बंध कर रह जाती उड़ान है
हर बार पैरों तले कुचला जाता जिसका स्वाभिमान है
इस संसार में क्या स्त्री रूप में जन्म लेना अपमान है
फिर क्यों स्त्री का क़ैद किया जाता यहांँ उड़ान है
क्या उनकी ख्वाहिशों में नहीं होती कोई जान है
मिलती क्यों नहीं स्त्री को भी बराबर का सम्मान है
स्त्री की भी होती एक अपनी अलग पहचान है
दो घरों को जोड़कर चलना कहांँ इतना आसान है
स्त्री को आगे बढ़ते देख कुछ पुरुष हो जाते परेशान है
स्त्री और पुरूष दोनों का हक जीवन में एक समान है
©प्रीति प्रभा
उड़ान
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