White मैं जो अब्र को भी बंद खींच लेता था मैं जो म | हिंदी Shayari

"White मैं जो अब्र को भी बंद खींच लेता था मैं जो मिट्टी को भी मिट्टी भींच लेता था मैं जो फ़ज़ायों पर करता था सफ़र मैं जो दरिया को भी रवानी से सींच देता था कि अब मुझको क्यों नहीं कुछ आईने दिखता एक आदित्य तो था जो कहीं है खो गया ©Kavi Aditya Shukla"

 White मैं जो अब्र को भी बंद खींच लेता था 
मैं जो मिट्टी को भी मिट्टी भींच लेता था
मैं जो फ़ज़ायों पर करता था सफ़र 
मैं जो दरिया को भी रवानी से सींच देता था
कि अब मुझको क्यों नहीं कुछ आईने दिखता 
एक आदित्य तो था जो कहीं है खो गया

©Kavi Aditya Shukla

White मैं जो अब्र को भी बंद खींच लेता था मैं जो मिट्टी को भी मिट्टी भींच लेता था मैं जो फ़ज़ायों पर करता था सफ़र मैं जो दरिया को भी रवानी से सींच देता था कि अब मुझको क्यों नहीं कुछ आईने दिखता एक आदित्य तो था जो कहीं है खो गया ©Kavi Aditya Shukla

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