ये आग मुझमें जली है जो ,
वो खुद को बेच के जलाई है।
सासें इसमें फूंकी हैं,
और नींद से तपाई है।
अब जो यह जली है तोह,
मशाल तो इसकी बनाऊंगा।
और जिन जिन ने इसे सेका है,
उनकी खुशनसीबी बतलाऊंगा।
अब धीर तू जागा है ,
माना बेमतलब ही भागा है
अब युद्ध होगा महाभारत सा ,
जिसमें करण भी तू और अर्जुन भी तू,
किस्से जिसके दूर तलक होंगे,
रणभूमि रंगेगी एहसासों से,
और सिपाही होंगे विचार तेरे,
पर जीत होगी खाबों की...
ये आग मुझमें जली है जो,
वो महाभारत दिखलाएगी।
और बोहोत उठेंगे करण अर्जुन , ऐसी भावना जगाएगी।।
©Dhir
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