हैं तो हसीनों के मेले में,
पर तेरी खातिर सबसे दीवार कर बैठे हैं!
है तुमसी कई यहां,पर तुम सी नही तुम चाहिये,
इसलिए सबसे इनकार कर बैठे हैं!
दुसरे नजारें नजर-अंदाज कर दिए इन नजरों ने,
जबसे तेरा दीदार कर बैठे हैं!
तेरे खयालों और मेरी नींदो की कैसी साजिश,
जो रातों से यलगार कर बैठे हैं!
तेरे इंतजार मे न सावन हरा, फूल खिले न मधुमास में,
और पतझड़ में बहार कर बैठे हैं!
अपने हांथों मे जरा मेरा नाम लिख तो सही मेंहदी से,
लाने को बारात तेरे घर, घोड़े पे सवार बैठे हैं!
सुनीताशत्रुहनसिंह नेताम
©Sunitashatruhansingh Netam
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