शबरी के घर चख लिए, जा कर जूठे बेर 'प्रहरी'-कुटी न | हिंदी कविता

"शबरी के घर चख लिए, जा कर जूठे बेर 'प्रहरी'-कुटी न कीजिए, आने में हरि देर। ©Anil Mishra Prahari"

 शबरी के घर चख लिए, जा कर जूठे बेर
'प्रहरी'-कुटी न कीजिए, आने में हरि देर।

©Anil Mishra Prahari

शबरी के घर चख लिए, जा कर जूठे बेर 'प्रहरी'-कुटी न कीजिए, आने में हरि देर। ©Anil Mishra Prahari

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