एक-एक कर चले गए,
बारी बारी छले गए,
दो पाटन के बीचों-बीच,
जितने थे सब दले गये,
गर्म तेल से भरी कराही,
गिरे तो समझो तले गये,
शोक और दुःख से यारों,
फ़ुरसत लेकर भले गये,
वक्त रेत सा फिसल गया,
हाथ अंत में मले गये,
अपनी आंखों के आगे,
टूटा भ्रम दिलजले गये,
संभल नहीं पाया 'गुंजन',
दल-दल में मनचले गये,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
#एक-एक कर चले गए#