निशी ने ना में सर हिला दिया और उन टिमटिमाते तारों को देखती रही। अव्यांश ने सीट को थोड़ा और एडजस्ट किया जिससे उन दोनों को ही आराम से लेटने में कोई दिक्कत ना हो। निशी भले ही कुछ ना कह रही हो लेकिन उसके चेहरे पर खुशी और उदासी दोनों झलक रही थी। अव्यांश को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। वह तो बस यह चाहता था कि वो दोनों अकेले में एक दूसरे से बहुत सारी बातें करें।
कहानी "सुन मेरे हमसफर"
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©दुःखीआत्मा
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