उंगलियाँ काप रही है चेतना सुन पड़ गई है कंठ रुध चु | हिंदी Poetry Vide

"उंगलियाँ काप रही है चेतना सुन पड़ गई है कंठ रुध चुके है गाल के शीर्ष पर खिचाव उभर आया है मेरे आँसू इस कद्र स्याह मे सरोबोर है कि काग़ज खुद को हम दोनो के लिहाफ से लपेटे जा रही है संवाद इतना गहरा है की तीनों लिन है एक दूसरे मे फ़िर भी हुजूम है कविता पर कविता लिखने का इतना आसान नही है उस पर कुछ लिखना जिसने हमें लिखा हो जैसे "माँ " और "कविता " ©चाँदनी "

उंगलियाँ काप रही है चेतना सुन पड़ गई है कंठ रुध चुके है गाल के शीर्ष पर खिचाव उभर आया है मेरे आँसू इस कद्र स्याह मे सरोबोर है कि काग़ज खुद को हम दोनो के लिहाफ से लपेटे जा रही है संवाद इतना गहरा है की तीनों लिन है एक दूसरे मे फ़िर भी हुजूम है कविता पर कविता लिखने का इतना आसान नही है उस पर कुछ लिखना जिसने हमें लिखा हो जैसे "माँ " और "कविता " ©चाँदनी

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