जानता हूं ,मैं भी तेरे नयनों परिभाषा को,
जानता हूं, मैं भी तेरे हृदय की अभिलाषा को।
फिर भी मैं खामोश हुं, तेरे प्यार आगोश में।
नजरो से अनजाना करके ,रहता हूं मैं होश में ।।
धीरे धीरे प्यार की जब , नजदिकिया जब बढ़ती है,
रंग रूप यौवन की सिसकियां भी बढ़ती है।
कुछ तो तुम महक रही हो,कुछ तो हम महक रहे।
एक दूजे को पाने को, हम मन ही मन चहक रहे।।
सच कहूं तो कुछ भी नहीं ऐसा ,हम खुद ही खुद से बहक रहे।।
©Ombhakat Mohan( kalam mewad ki)
@Santosh Kumar @Puja Udeshi @@nirukavya MIND-TALK @R Ojha