पल्लव की डायरी अब खुद गुमराह है संसद एक दशक से व | हिंदी कविता

"पल्लव की डायरी अब खुद गुमराह है संसद एक दशक से विपक्ष का भार सह नही पाती है खुद एक समस्या बन गयी ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर चीरहरण जन जन का करती है पाशे शकुनि जैसे सत्ताधीशो के दाँव पर फिर भारत को लगाया जा रहा है शय्या पर लोकतंत्र लेटा हठी दुर्योजन सब नैतिकता खोता है गिरा कर स्तर संसद का हर मुद्दा दरकिनार करता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव""

 पल्लव की डायरी
अब खुद गुमराह है 
संसद एक दशक से 
विपक्ष का भार सह नही पाती है
खुद एक समस्या बन गयी
ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर
चीरहरण जन जन का करती है
पाशे शकुनि जैसे सत्ताधीशो के
दाँव पर फिर भारत को लगाया जा रहा है
शय्या पर लोकतंत्र लेटा
हठी दुर्योजन सब नैतिकता खोता  है
गिरा कर स्तर संसद का
हर मुद्दा दरकिनार करता है
                                                      प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

पल्लव की डायरी अब खुद गुमराह है संसद एक दशक से विपक्ष का भार सह नही पाती है खुद एक समस्या बन गयी ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर चीरहरण जन जन का करती है पाशे शकुनि जैसे सत्ताधीशो के दाँव पर फिर भारत को लगाया जा रहा है शय्या पर लोकतंत्र लेटा हठी दुर्योजन सब नैतिकता खोता है गिरा कर स्तर संसद का हर मुद्दा दरकिनार करता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#Budget23 शय्या पर लोकतंत्र लेटा

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