Maa जिस्म से ज़ब रूह जुदा होती हैं
ना पूछो क्या दुर्दशा होती हैं...
कलेज़े पर रखती है पत्थर माँ
जब बेटी की (जुदाई) विदाई होती हैं...
बिछड़ती है ऊँगली बाबा की
माँ के आँचल की छाँव छूटती है...
घर की सब दर दीवारे सुन्न
सन्नाटे की आह गूंजती है
जब बेटी की विदाई होती है....
हर चीज पराई होती हैं....
हंसी ठहाके ठिठोलियाँ लड़कपन,
बचपन की वो सब गलियां भूलती हैं
चिड़िया सी चहचहाने वाली
हर साख पर अपना हक जमाने वाली,
आँगन में फिर से वही बगिया ढूंढती हैं
जब बेटी की विदाई होती हैं....
हर चीज पराई होती हैं......
बाबा का अभिमान, माँ की सीख समझ और ज्ञान
सहेज चलती वो पल्लू में बांधकर जैसे कोई कीमती धरोहर
पहला कदम जब नए आशियाने में रखती हैं
भाई बहन की नोक-झोंक, लड़ाई-झगड़े,
मौज-मस्ती के शोर को चारों और खोजती हैं...
जब बेटी की विदाई होती हैं.....
हर चीज पराई होती हैं....
माहौल नया लोग नए अंदाज सब नए निराले
अवसर नया, सफर नया, संघर्ष नया, परीक्षा नई,
देकर साक्षात्कार तब बेटी, बहू का पद संभालती
जब भी लड़खड़ाती, डगमगाती, विचलित या
भर्मित हो जाती तब खुद में वो माँ को टटोलती हैं
जब बेटी की विदाई होती हैं....
ना पूछो क्या दुर्दशा होती
कलेज़े पर रखती हैं पत्थर माँ
हर चीज पराई होती हैं
जब बेटी की विदाई होती हैं.........................!
©Moksha
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