ऐसा नहीं के तुझसे मुहब्बत नहीं रही
लेकिन अब यार पहले सी शिद्दत नहीं रही
हांँ होती थी दिल में तेरे साथ रहने की हसरत
अब तेरे साथ की भी ज़रूरत नहीं रही
तो किया हुवा जो मेने तुझे दिल से करा अलग
अब तेरी आंख में भी तो वो गैरत नहीं रही
मौसम की तरंह यार अब तुम भी बदल गए
सूरत वही है पर वही सीरत नहीं रही
लिख कर के भी( फहीम )में अब भी उदास हूं
शायद ये झूठ है के ज़रूरत नहीं रही
वो पेड़ जड़ों समीत उखड़ जाता है फहीम
जिस पेड़ को ज़मीन से उलफत नहीं रही
©Faheem Rahi Noorpuri
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