हर बात में छुपा वो इशारा अजब सा था,
जुमला तो उनका तीर, मगर असर ग़ज़ब सा था।
खामोशियाँ भी जैसे फ़ासलों का हिसाब थीं,
हँसी में जो छुपाई गई, वो दर्द की किताब थीं।
लफ़्ज़ों के परदे में छुपा था जो राज़ उनका,
वो कहानी अधूरी थी, मगर बेहिसाब थीं।
©नवनीत ठाकुर
#नवनीतठाकुर
हर बात में छुपा वो इशारा अजब सा था,
जुमला तो उनका तीर, मगर असर ग़ज़ब सा था।
खामोशियाँ भी जैसे फ़ासलों का हिसाब थीं,
हँसी में जो छुपाई गई, वो दर्द की किताब थीं।
लफ़्ज़ों के परदे में छुपा था जो राज़ उनका,