एक समय ऐसा भी होता...
एक तस्वीर कितना कुछ कहती सनलो एक छोटी कहानी..–
पिता की जेब फट गई बेटे की जेब सिलते सिलते
चप्पल टूट कर छूट गई
नए जूते दिलाने को
हर पल बस इतना ही चाहा खुश रहे मेरा लल्ला
रात को तकिए भिगो भिगो कर
लल्ला को दिए हसी के ठहाके
फिर एक दिन समय बदला
पढ़ने लल्ला बाहर गया
भूल पिता की गति जेब वो
सत्ता, दारू नशे किया वो
एक। समय ऐसा भी आया
भूल पिता को अपने वो
शादी कर ग्रहस्ती बसाया
बाल बच्चे जब खुद के हुए तब एक बात समझ में आया
लल्ले के लल्ला ने पूछा दादाजी का हाल
मुंह बंद हो गया लल्ला का जब सोचा बाबूजी का हाल
छोड़ नगर वो माया की
आए लल्ला घर को जब
फटी चटाई,टूटे खिड़की , बिन छत पाया पिता का घर
माफी मांग पकड़ लिए पांव
पिता है वो क्या बोलेगा
खुश रह लल्ला
मेरे तू मैं तो जा चुका हूं कबका
आखरी बोल ये सुनले तू....
एक तस्वीर है तेरी मेरी
उनको भी जलाकर फेंक दे तू.।
©Akhilesh Rai
हर तस्वीर कुछ कहती है
कभी बेटे की कभी पिता की नई कहानी गढ़ती है...
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