उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी, जिसका सिंगार मैं
"उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी,
जिसका सिंगार मैं किया करती थी।
नटखट-सी, झल्ली-सी मैं,
उसे पसंद किया करती थी।
उसे पसंद थी, पागल-सी मैं,
जब एक नाम से उसे चिड़ाती थी।
और दिल ही दिल मैं सिर्फ,
उसे ही अपना मानती थी।"
उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी,
जिसका सिंगार मैं किया करती थी।
नटखट-सी, झल्ली-सी मैं,
उसे पसंद किया करती थी।
उसे पसंद थी, पागल-सी मैं,
जब एक नाम से उसे चिड़ाती थी।
और दिल ही दिल मैं सिर्फ,
उसे ही अपना मानती थी।