a-person-standing-on-a-beach-at-sunset किसी शाम समन्दर के किनारे
शुकून के चार पल बिताते ,
दो पल मैं ,दो पल तुम
अपने मन के हाल जताते।
मैं कहता, बिखर रहा हूँ
उम्र के थपेड़ों से नाकामयाब होकर,
तुम कहते, यूं सिसकियाँ लेके
"थक गया हूँ खुद का सब्र आजमाते।।
©अरविन्द (Scolgy....)
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