दीपक
कहता है दीपक हम सबसे
तुम मेरे मन की व्यथा सुनो
मेरी भी एक कहानी है
दुःख भरी मेरी है कथा सुनो
पहले जमीन का हिस्सा था
जीवन देता था औरों को
खिलते थे फूल बुलाते थे
मकरंद के प्यासे भौंरों को
मुझे पर कुम्हार का दिल आया
ले गया उठा कर अपने घर
उसने यह रूप दिया मुझको
कोई भी देख कहे सुंदर
निकली है आह मेरी उसने
तपती भट्ठी में तपा दिया
डाला है बाती तेल मुझे
ले गया मुझे जो जला दिया
रहता हूँ स्वयं अंधेरे में
पर उसे उजाला देता हूँ
इसके बदले में मैं कुछ भी
उससे कुछ भी ना लेता हूँ
कहता हूँ मेरी बात सुनो
बेखुद मेरा यह किस्सा है
जलना बुझना ही प्रतिदिन अब
मेरे जीवन का हिस्सा है
©Sunil Kumar Maurya Bekhud
#दीपक