मुझसे कुछ कहती है सीने पर हाथ रख वो कितना कुछ सहत | हिंदी कविता

"मुझसे कुछ कहती है सीने पर हाथ रख वो कितना कुछ सहती है दर्द वो अपना कुछ कह नहीं सकती है बस मुंह छुपाए वो खुद आंसू पोंछती रहती है मेरी तन्हाई मुझसे कुछ कहती है कहती है वो मुझसे की तू साथ चल मेरे हाथ पकड़ मेरा और दर्द सुन मेरे मैं तन्हा भटकती रहती कोई साथ नहीं मेरे सफर कटे ये कैसे कोई पास नहीं मेरे मैं भीड़ में भी अकेली कोई जज़्बात नहीं मेरे आज़ाद हूं मैं लेकिन कोई विचार नहीं मेरे मेरी तन्हाई मुझसे कुछ कहती है ......................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit"

 मुझसे कुछ कहती है
सीने पर हाथ रख 
वो कितना कुछ सहती है
दर्द वो अपना
कुछ कह नहीं सकती है
बस मुंह छुपाए वो
खुद आंसू पोंछती रहती है

मेरी तन्हाई 
मुझसे कुछ कहती है
कहती है वो मुझसे
की तू साथ चल मेरे
हाथ पकड़ मेरा 
और दर्द सुन मेरे
मैं तन्हा भटकती रहती
कोई साथ नहीं मेरे
सफर कटे ये कैसे
कोई पास नहीं मेरे
मैं भीड़ में भी अकेली
कोई जज़्बात नहीं मेरे
आज़ाद हूं मैं लेकिन
कोई विचार नहीं मेरे

मेरी तन्हाई
मुझसे कुछ कहती है
.........................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

मुझसे कुछ कहती है सीने पर हाथ रख वो कितना कुछ सहती है दर्द वो अपना कुछ कह नहीं सकती है बस मुंह छुपाए वो खुद आंसू पोंछती रहती है मेरी तन्हाई मुझसे कुछ कहती है कहती है वो मुझसे की तू साथ चल मेरे हाथ पकड़ मेरा और दर्द सुन मेरे मैं तन्हा भटकती रहती कोई साथ नहीं मेरे सफर कटे ये कैसे कोई पास नहीं मेरे मैं भीड़ में भी अकेली कोई जज़्बात नहीं मेरे आज़ाद हूं मैं लेकिन कोई विचार नहीं मेरे मेरी तन्हाई मुझसे कुछ कहती है ......................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

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मेरी तन्हाई

मेरी तन्हाई
मुझसे कुछ कहती है
सीने पर हाथ रख
वो कितना कुछ सहती है

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