जब नाव जल में छोड दी
तूफान में ही मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को
फिर धार क्या मंझधार क्या
कह मृत्यु को वरदान ही
मरना लिया जब ठान ही
जब आ गये रणभूमि में
फिर जीत क्या फिर हार क्या
जब छोड़ दी सुख की कामना
आरंभ कर दी साधना
सघर्ष पथ पर बढ़ चले
फिर फूल क्या अंगार क्या
संसार का पी, पी गरल
जब कर लिया मन को सरल
भगवान शंकर हो गए
फिर राख क्या श्रंगार क्या
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©Arpit Mishra
हरिवंश राय बच्चन