मेरे घर-आँगन की रानी हो तुम
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मिट्टी की महक व चेहरे की दमक,
और सुंदरता की मूरत हो तुम।
अपने शब्दों से बयांँ मैं क्या करूंँ,
मेरे लिए बड़ी लाजवाब हो तुम।
देख जिसे ये गुलाब भी शरमा जाए,
मेरे लिए वो कली कचनार हो तुम।
यौवन तेरा मन को मेरे लुभा जाए,
अब तो जीवन का ऐहसास हो तुम।
रब ने बनाया जिसे फ़ुर्सत से मेरे लिए,
मेरा तो वो बेमिसाल साथी हो तुम।
ऐ मेरी कजरारी तिरछी नैंनो वाली,
ख्वाब ही नहीं हकीक़त में भी हो तुम।
ख़्वाब तो पलभर के लिए होता है,
मेरे जीवन भर की तालाश हो तुम।
सुनो हकीक़त ये है कि मेरे लिए तो,
मेरे इस घर-आँगन की रानी हो तुम।
संदीप कुमार 'विश्वास'✍️
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